• एकात्मकता, समरसता के बंधन को सुदृढ करनेवाला चुनाव

     


    नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के पश्चात सरकारी कामकाज में स्थापित अनेक चौखटों को पार करना प्रारंभ किया। इन चौखटों को पार करने के पीछे अनेक योजनाबद्ध राजनीतिक गणित होता है। इसके साथ ही विशिष्ट सत्ता, गिरोह और उसके साथ आए हितों के विशेष गौरव को बनाए रखने का एक सुप्त उद्देश्य था। नरेंद्र मोदी ने एक विशेष उद्देश्य से इन चौखटों को पार करना शुरू किया। केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले पद्म पुरस्कार, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भाषण करने के लिए जनता की ओर से सलाह मंगवाना, विदेशी दौरे के माध्यम से विदेश में अप्रवासी भारतीयों को भारत की विकास प्रक्रिया में सहभागी करके लेना इस तरह के निर्णयों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह चौखटों के बाहर जाकर कैसे विचार करते हैं, यह दिखाई देता है।

    'मन की बात' के माध्यम से जनता से संवाद करना हो या केंद्र की योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों से संवाद करना हो इन सब के माध्यम से जनता से सीधा संवाद स्थापित करने वाले राजनेता के रूप में नरेंद्र मोदी का रूप मजबूती से पिछले आठ वर्षों में बार-बार सामने आता है। समाज के उपेक्षित, वंचित समूहों का सम्मान करने को भी मोदी की कार्यपद्धति की एक  विशिष्टता बताया जा सकता है। 2019 के कुंभ मेले में गंगा नदी की स्वच्छता करनेवाले सफाई कर्मचारियों के पैरों को धो कर उनकी वंदना करके प्रधानमंत्री ने समाज के दुर्लक्षित समूहों के प्रति कृतज्ञता की भावना होना आवश्यक है, ऐसा संदेश दिया। वाराणसी मे 6 महीने पहले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के अवसर पर शिखा रस्तोगी नामक दिव्यांग महिला को नीचे झुककर नमस्कार करनेवाले प्रधानमंत्री मोदी इसीलिए आम लोगों को अपने लगते हैं।

    राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी घोषित करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उपेक्षित समाज के समूह को सम्मानित करने की विचारधारा का ही पुरस्कार है। राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी समाज की अत्यंत कर्तव्यशील महिला को उम्मीदवारी देकर भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय एकात्मकता, सामाजिक समरसता के बंधन को अधिक मजबूत किया है, इसमें रंचमात्र भी शंका नही है। झारखंड में संथाल समाज का ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संग्राम में बड़ा योगदान है।1855 में संथाल समाज के आदिवासी किसानों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बड़ा विद्रोह किया। इस विद्रोह के कारण ब्रिटिश सरकार पूरी तरह से हिल गई थी। सालों साल से सामुदायिक खेती करनेवाले संथालों की जमीन का मालिकाना अधिकार जमींदारों को देने का निर्णय ब्रिटिश सरकार ने लिया था। इसके खिलाफ विद्रोह पुकारने वाले संथाल किसानों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन की चिंगारी धीरे धीरे देशभर में फैल गई। ऐसे इस लडाकू समुदाय का स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान करने के लिए राष्ट्रपति पद के लिए द्रोपदी मुर्मू की उम्मीदवारी घोषित करके उनका सम्मान किया है। आज तक इस समाज को देश के सर्वोच्च पद को शोभायमान करने का अवसर नही मिला था।  द्रोपदी मुर्मू को यह अवसर उनके स्वयं के कार्यों से मिला है। इसके पहले उन्हें झारखंड के राज्यपाल के पद पर जब नियुक्त किया गया तब 'यह कौन है' ऐसी आश्चर्यजनक मुद्रा में उनकी पूछताछ की गई। राष्ट्रपति पद के लिए अनेक उच्च शिक्षित, अगड़ी जाती- जनजातियों के प्रतिनिधियों के लिए लगाए गए निर्धारित मानदंड द्रोपदी मुर्मू के लिए नही लगाए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुर्मू का चुनाव करने के निर्णय के पीछे का विचार राष्ट्रवादी विचारधारा को अधिक व्यापक करने का है। नक्सलवादी आंदोलन जिस दंडकारण्य में तेजी से फैली, गरीब आदिवासी जनता को गुमराह करके, आतंक के आधार पर नक्सलवादियों ने पीछे रखा, ऐसे पट्टे की एक महिला को देश का सर्वोच्च पद विभूषित करने अवसर दिया जा रहा है।

    द्रौपदी मुर्मू ने जीवित रहने के लिए आम आदमी के वास्तविक संघर्ष का अनुभव किया है। उन्होंने परिस्थिति को बिना किसी शिकायत के सहन किया है। लेकिन इस पर ध्यान न देते हुए विलक्षण धैर्य से वे सार्वजनिक जीवन में चलती रही। व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों को उन्होंने कभी भी सार्वजनिक नही किया । अत्यंत सामान्य स्थिति वाले परिवार में उनका जन्म हुआ। अनेक समस्याओं का सामना करते हुए उन्होंने अपनी स्नातक तक की शिक्षा को पूरा किया। उन्होंने उडीसा राज्य सरकार के सिंचाई, ऊर्जा विभाग में सहायक के रूप में काम करने के बाद कई वर्षों तक एक शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान महिला सशक्तिकरण के लिए उन्होंने जो काम किया है वह प्रशंसनीय है। आगे, भाजपा पार्षद और विधायक के रूप में राजनीति में उनकी यात्रा तब तक जारी रही जब तक उन्हें उडीसा के मंत्रिमंडल में अवसर नहीं मिला। विधायक और मंत्री के रूप में काम करने के दौरान उन्हें बड़ा प्रशासनिक अनुभव मिला। राजनीतिक यात्रा में उन पर आज तक कोई आरोप नही लगा। द्रौपदी मुर्मू को जनसेवा और महिला सशक्तिकरण की दिशा में उनके काम के लिए 2007 में उड़ीसा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के रूप में सम्मानित किया गया। युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिले ऐसा व्यक्तित्व रही द्रोपदी मुर्मू जी की राजनीतिक निष्कलंक यात्रा के कारण ही देश का सर्वोच्च पद को भूषित करने का अवसर मिला है। भारतीय जनता पार्टी के स्वयं के संख्याबल को देखते हुए व अनेक विपक्षी पार्टियों द्वारा दिए समर्थन को देखते हुए मुर्मू का राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव यह केवल एक औपचारिकता रह गई है। इस लेख के माध्यम से श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को शुभकामनाएं देता हूं।

     

    (लेख का पूर्व प्रकाशन  हमारा महानगर, 14 जुलाई 2022)

    केशव उपाध्ये, मुख्य प्रवक्ता


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